रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
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जिस फूलों की परवरिश हमने अपनी मोहब्बत से की.. जब वो खुशबु के काबिल हुए तो औरो के लिए महेकने लगे !
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